मुख से कुछ न बोलूंगा, अब कलम चलाकर कहना है ।
मुझको लिखते रहना है ।।
वाणी में तो आपत्ति है,वाणी में झुंझलाहट है।
वाणी में अंतर्विरोध है ,वाणी में बनावट है ।।
वाणी में आतंक बड़ा है, वाणी से टूटें दो घर।
कितने अच्छे भी रिश्तें हों ,वाणी कर दे गुड़ गोबर ।।
जिह्वा को विराम दे रहा,स्याही तक सीमित रहना है ।
मुझको लिखते रहना है ।।
मुझको लिखते रहना है ।।
वाणी में तो आपत्ति है,वाणी में झुंझलाहट है।
वाणी में अंतर्विरोध है ,वाणी में बनावट है ।।
वाणी में आतंक बड़ा है, वाणी से टूटें दो घर।
कितने अच्छे भी रिश्तें हों ,वाणी कर दे गुड़ गोबर ।।
जिह्वा को विराम दे रहा,स्याही तक सीमित रहना है ।
मुझको लिखते रहना है ।।
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